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Showing posts from January, 2020

भारतवर्ष

प्रथम , प्रबल , प्रकाशमान था यह  धरती का स्वाभिमान था यह||   सिंधु घाटी से शुरू है जिसकी दास्तान -ए - हर्ष  वह हमारा भारतवर्ष ||  वेदों के ज्ञान से इस धरती का पुराना नाता है  नर और नारी दोनों को यहाँ बराबरी का समझा जाता है||   रघुवंश से लेकर महाभारत तक इसने देखा हर संघर्ष है  यह पुण्यवेदी कोई और नहीं हमारा भारतवर्ष है ||  पाटलिपुत्र के सिंघासन से अब इसका मान था  कौटिल्य , आर्यभट्ट,सुश्रुत के ज्ञान का सम्मान था ||  महान योद्धाओं से भरा था फिर भी प्रेम का आदर्श था  वह महानतम से भी महान हमारा भारतवर्ष था ||  महावीर और बुद्ध के वचनों से वातावरण सराबोर था  सर्वधर्म समभाव का यहाँ पर नया दौर था  वसुधैव कुटुम्ब कम से द्वेष का अपकर्ष है  यह प्रेमभूमि कोई और नहीं हमारा भारतवर्ष है  सोलह आक्रम ण के बाद सत्र वीं बार छल जीत गया इसी काल में आग लगते दानवों का दल जीत गया ||  इस धरती पर हिंसा देखने का इतिहास को भी अंगमर्ष है  अपने कर्त्तव्य पर फिर बड़े जो , वो हमारा भारतवर्ष है ||  समय के साथ चल पड़े हम एकता की रीत में  ह्रदय भी अब बांध गए थे अपनेपन में प्रीत में ||  गूण आक्र

अपराजिता

आज उसको खुद से ही आस है | दुनिया पर नहीं उसे खुद पर विश्वास है || कमजोर है मगर कमज़ोरी को ताकत बनाती है जो | डर को भी डरा दे , अपरिजिता है वो || दुनिया ने जो सिखाया सब छोड़ चली है| अपने हाथों की लकीरें मोड़ रही है || अब नहीं दूसरों के सहारे चलती है जो| हार के भी न हारे , अपराजिता है वो|| दूसरों की नहीं दिल की भी सुनती है| अपने  सपनो की दुनिया को अकेले ही बुनती है|| खुद की सबसे बड़ी मददगार है जो | गिरकर भी न गिरे , अपराजिता है वो||  यह एक नहीं हर नारी की कहानी है| तेरा जीवन ही नहीं तेरा संघर्ष भी रूहानी है||  जमीन से उठकर  आसमान को ले तू छू | तेरे संघर्ष में शक्ति है क्यूंकि अपराजिता है तू ||