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माँ

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मेरी प्यारी माँ के नाम , ममतामयी उस प्रीति का न दिख रहा कोई अंत है क्यों न थके , ये न रुके, क्या ये कहीं  कोई संत है | हर कष्ट में भी यूँ हसे , हो सूर्य की जैसे किरण हे माँ तुमको है नमन , ऐ माँ तुमको है नमन || संतान की रक्षा में तो , तू दुर्गा सी विक्राल है परिवार के हर खतरे पर , तू स्वयं ही महाकाल है | मेरे लिए इस विश्व में , तू सर्वशक्तिमान है हे माँ तू महान है , ऐ माँ तू महान है|| जगमगाया जीव का जीवन ,तो कारण तू ही है हो  शिखर पर इंसान जो , उसका भी साधन तू ही है | तेरे बिना अस्तित्व क्या , तू सफलता की सोपान है हे माँ तू एक वरदान है , ऐ माँ तू एक वरदान है || तुझसे मेरा क्या मुकाबला , मुझपर तेरा अधिकार है अक्षर तक तेरी देन है ,तू सरस्वती अवतार है| घर से जो था नाता तेरा आज ऑफिस में भी विद्यमान है हे माँ तू मेरा अभिमान है , ऐ माँ तू मेरा अभिमान है || माता-पिता की रक्षा में हम जी रहे सुरक्षा में सत्य ये सुन लो सभी कृतज्ञ हैं हम सब अभी माता तेरे हर रूप का वंदनवार बारम्बार है हे माँ तेरा आभार है , ऐ माँ तेरा आभार है | मातृ दिवस के उपलक्ष्य में सभी महान माता

तुम्हारी जिंदगी

कठिन है कष्टदायक है  जीवन बड़ा दुखदायक है | मगर जीना छोड़ देने में भी कहाँ की समझदारी है  हंस के  जियो या रो के , ये जिंदगी तुम्हारी है || कैद रहेगा  यूँ हीं तू कब तक इस मानसिक जाल में  हाँ माना कल तू था गिरा, कब तक रहेगा उस काल में | आगे बढ़ , क्यों है रुका , हर पल की तेरी साझेदारी है  हंस के जियो या रो के , ये जिंदगी तुम्हारी है || तेरा जीवन तू ही जाने कितने कष्ट उठाएं हैं  क्यों न आगे सह सकेगा , आज तक तो सहते आएं हैं | पुराना कुछ न होगा अब , कर नी नयी चुनौती की तैयारी है  हंस के जियो या रो के , ये जिंदगी तुम्हारी है|| एक मौका छिन  गया है और सैकड़ों गवां दिए  उस एक की आस में पल सैकड़ों दांव पर लगा दिए | मौके तुझपे लाख है , तेरी दास्तां उजियारी है  हंस के जियो या रो के , ये जिंदगी तुम्हारी है|| हाँ जीवन अँधियारा है मगर , मैं भी जलती मशाल हूँ  माना संघर्ष कठिन है मगर , मैं कठिनाइयों से विशाल हूँ || क्यों यूँ ही थम जाऊँ मैं , मेरे संघर्ष की मुझपर जिम्मेदारी है  हंस के जियूं क्यों रोऊँ मैं , ये जिंदगी हमारी है , ये जिंदगी बहुत प्यारी है ||

भारतवर्ष

प्रथम , प्रबल , प्रकाशमान था यह  धरती का स्वाभिमान था यह||   सिंधु घाटी से शुरू है जिसकी दास्तान -ए - हर्ष  वह हमारा भारतवर्ष ||  वेदों के ज्ञान से इस धरती का पुराना नाता है  नर और नारी दोनों को यहाँ बराबरी का समझा जाता है||   रघुवंश से लेकर महाभारत तक इसने देखा हर संघर्ष है  यह पुण्यवेदी कोई और नहीं हमारा भारतवर्ष है ||  पाटलिपुत्र के सिंघासन से अब इसका मान था  कौटिल्य , आर्यभट्ट,सुश्रुत के ज्ञान का सम्मान था ||  महान योद्धाओं से भरा था फिर भी प्रेम का आदर्श था  वह महानतम से भी महान हमारा भारतवर्ष था ||  महावीर और बुद्ध के वचनों से वातावरण सराबोर था  सर्वधर्म समभाव का यहाँ पर नया दौर था  वसुधैव कुटुम्ब कम से द्वेष का अपकर्ष है  यह प्रेमभूमि कोई और नहीं हमारा भारतवर्ष है  सोलह आक्रम ण के बाद सत्र वीं बार छल जीत गया इसी काल में आग लगते दानवों का दल जीत गया ||  इस धरती पर हिंसा देखने का इतिहास को भी अंगमर्ष है  अपने कर्त्तव्य पर फिर बड़े जो , वो हमारा भारतवर्ष है ||  समय के साथ चल पड़े हम एकता की रीत में  ह्रदय भी अब बांध गए थे अपनेपन में प्रीत में ||  गूण आक्र

अपराजिता

आज उसको खुद से ही आस है | दुनिया पर नहीं उसे खुद पर विश्वास है || कमजोर है मगर कमज़ोरी को ताकत बनाती है जो | डर को भी डरा दे , अपरिजिता है वो || दुनिया ने जो सिखाया सब छोड़ चली है| अपने हाथों की लकीरें मोड़ रही है || अब नहीं दूसरों के सहारे चलती है जो| हार के भी न हारे , अपराजिता है वो|| दूसरों की नहीं दिल की भी सुनती है| अपने  सपनो की दुनिया को अकेले ही बुनती है|| खुद की सबसे बड़ी मददगार है जो | गिरकर भी न गिरे , अपराजिता है वो||  यह एक नहीं हर नारी की कहानी है| तेरा जीवन ही नहीं तेरा संघर्ष भी रूहानी है||  जमीन से उठकर  आसमान को ले तू छू | तेरे संघर्ष में शक्ति है क्यूंकि अपराजिता है तू ||

संघर्ष

हंस कर कट जातें है जीवन लाखों के फिर भी सुखी नहीं होते है लोग बनावट की हंसी के पीछे लाखो षडियंत्र लाखो लोभ कब वो दिन आएगा जब हम भी जीवन के मायने समझ पाएंगे किसी का दुश्मन यहाँ पैसा है तो किसी का गरीबी का रोग || अजीब बनावट है संसार के इन नियम नातों की समझने के लिए न जरुरत किताब न बातों की | जितना भी जो भी सीखेगा अनुभव से ही सीख पायेगा जिंदगी ऐसी धुप है जिससे बचने के लिए न जरुरत है ओढ़नी न छातों की || सिफारिश भी कहां तक ले जाएगी सोच लें मेहनत से कमाई एक अदनी सी चवन्नी को भी दबोच ले | जो सुख कर्म का पानी पीने में है वो उधारी का शरबत क्या दे पायेगा आलस के शैतान को अब तो पुरुषार्थ  के नाखूनों से नोच ले || जला अंदर के दैत्य को जगा  एक नयी आंधी मन में जीवन में विश्वास की लौ को थामे रखना चाहे जितनी जलन हो तन में| फिर देख कैसे सफलता का एहसास तेरे कदम चूमता रह जायेगा हर किसी को सुख प्राप्त नहीं होता संघर्ष का जीवन में || धन्यवाद् 

लो बदला

यह कविता मैंने  १५ फरवरी २०१९ को पुलवामा में हुए कायराना हमले के बाद लिखी थी | इस कविता को लिखते वक्त मेरी आखों में अश्रु थे जिस कारण इस कविता में सुंदरता अथवा रस का आभाव हो सकता है | यह कविता मैंने पूर्णतः भावनाओ से प्रभावित होकर लिखी थी | इतनी गमगीन हूँ  कि कुछ कह नहीं पा रही हूँ इस आराम की जिंदगी में रह नहीं पा रही हूँ | कोई इतना दयालु है कि मेरे चंद खुशनुमा पलों के खातिर मिट गया अपनी यह कृतघ्नता मै सह नहीं पा रही हूँ || हद तो तब हो गयी जब उसने आह तक न कि खुद को मटाने में ख़ुशी ख़ुशी कुर्बान हो गया वो हमको बचाने में| हम कहाँ इस महानता के लायक थे साहब हम तो वो है जो बस लड़ने की वजह ढूंढ़ते थे हर ज़माने में || शायद दशकों बाद आज हमे अपनी एकता का एहसास है तुम्हारा जीवन तो अतुलनीय था ही तुम्हारा बलिदान भी ख़ास है| यदि आज भी तुम्हारा एहसान न चुका पाए हम तो हमारा आक्रोश, क्रोध और जीवन सब बकवास है || आज चमक तुम्हारी इतनी है कि तुमसे नजरें नहीं मिला पा रही हूँ और मै तुम्हारी चरणों की धूल बराबर भी नहीं ये सोचकर अपनी ही नज़रों में गिरती जा रही हूँ | बस अब बहुत हुआ

एक आग का दरिया है और तैर के जाना है

यह कविता मैंने तब लिखी थी जब मेरा एक अहम् परीक्षा में चयन नहीं हुआ था | तब के अवसादमय  हालात  में यह कविता लिखी गई है | आँखे खोलते ही संसार देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं रोते हुए हस्ते हुए क्या क्या कह जाते हैं जब खुद ही नासमझ है तो कठिन दूसरों को समझाना है जीवन एक आग का दरिया है और तैर के जाना है दिल को भी न पता हो जब ,कि क्या कह जायेंगे कदम आगे बढ़ेंगे या दौड़ में पीछे रह जायेंगे सफलता असफलता से भी कठिन खुद को अपना भविष्य बतलाना है संसार एक आग का दरिया है और तैर कि जाना है जब समझ आएगा तो सोचेंगे आगे क्या करना है जी भर के जीना है या परिणाम से डरना है इतनी समझ होने तक मन को भी तो समझाना है मंजिल आग का दरिया है और तैर के जाना है आज सोचा दूध का दूध और पानी का पानी करूँ चुपचाप यूँ  हीं बैठी रहूं  या सत्य के लिए लड़ूँ क्या कौन ए जिंदगी मेरा तो तौर पुराना है सत्य आग का दरिया है और तैर के जाना है प्रेम के बस तीन द्वार बाकि सब खुद से दूर ले जायेंगे प्रभु पुस्तक और परिवार के बल पर ही हम खुद को पहचान पाएंगे सुख खोज लो जीवन में वार्ना क्या लाए थे क्या ले