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Showing posts from November, 2019

संघर्ष

हंस कर कट जातें है जीवन लाखों के फिर भी सुखी नहीं होते है लोग बनावट की हंसी के पीछे लाखो षडियंत्र लाखो लोभ कब वो दिन आएगा जब हम भी जीवन के मायने समझ पाएंगे किसी का दुश्मन यहाँ पैसा है तो किसी का गरीबी का रोग || अजीब बनावट है संसार के इन नियम नातों की समझने के लिए न जरुरत किताब न बातों की | जितना भी जो भी सीखेगा अनुभव से ही सीख पायेगा जिंदगी ऐसी धुप है जिससे बचने के लिए न जरुरत है ओढ़नी न छातों की || सिफारिश भी कहां तक ले जाएगी सोच लें मेहनत से कमाई एक अदनी सी चवन्नी को भी दबोच ले | जो सुख कर्म का पानी पीने में है वो उधारी का शरबत क्या दे पायेगा आलस के शैतान को अब तो पुरुषार्थ  के नाखूनों से नोच ले || जला अंदर के दैत्य को जगा  एक नयी आंधी मन में जीवन में विश्वास की लौ को थामे रखना चाहे जितनी जलन हो तन में| फिर देख कैसे सफलता का एहसास तेरे कदम चूमता रह जायेगा हर किसी को सुख प्राप्त नहीं होता संघर्ष का जीवन में || धन्यवाद् 

लो बदला

यह कविता मैंने  १५ फरवरी २०१९ को पुलवामा में हुए कायराना हमले के बाद लिखी थी | इस कविता को लिखते वक्त मेरी आखों में अश्रु थे जिस कारण इस कविता में सुंदरता अथवा रस का आभाव हो सकता है | यह कविता मैंने पूर्णतः भावनाओ से प्रभावित होकर लिखी थी | इतनी गमगीन हूँ  कि कुछ कह नहीं पा रही हूँ इस आराम की जिंदगी में रह नहीं पा रही हूँ | कोई इतना दयालु है कि मेरे चंद खुशनुमा पलों के खातिर मिट गया अपनी यह कृतघ्नता मै सह नहीं पा रही हूँ || हद तो तब हो गयी जब उसने आह तक न कि खुद को मटाने में ख़ुशी ख़ुशी कुर्बान हो गया वो हमको बचाने में| हम कहाँ इस महानता के लायक थे साहब हम तो वो है जो बस लड़ने की वजह ढूंढ़ते थे हर ज़माने में || शायद दशकों बाद आज हमे अपनी एकता का एहसास है तुम्हारा जीवन तो अतुलनीय था ही तुम्हारा बलिदान भी ख़ास है| यदि आज भी तुम्हारा एहसान न चुका पाए हम तो हमारा आक्रोश, क्रोध और जीवन सब बकवास है || आज चमक तुम्हारी इतनी है कि तुमसे नजरें नहीं मिला पा रही हूँ और मै तुम्हारी चरणों की धूल बराबर भी नहीं ये सोचकर अपनी ही नज़रों में गिरती जा रही हूँ | बस अब बहुत हुआ

एक आग का दरिया है और तैर के जाना है

यह कविता मैंने तब लिखी थी जब मेरा एक अहम् परीक्षा में चयन नहीं हुआ था | तब के अवसादमय  हालात  में यह कविता लिखी गई है | आँखे खोलते ही संसार देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं रोते हुए हस्ते हुए क्या क्या कह जाते हैं जब खुद ही नासमझ है तो कठिन दूसरों को समझाना है जीवन एक आग का दरिया है और तैर के जाना है दिल को भी न पता हो जब ,कि क्या कह जायेंगे कदम आगे बढ़ेंगे या दौड़ में पीछे रह जायेंगे सफलता असफलता से भी कठिन खुद को अपना भविष्य बतलाना है संसार एक आग का दरिया है और तैर कि जाना है जब समझ आएगा तो सोचेंगे आगे क्या करना है जी भर के जीना है या परिणाम से डरना है इतनी समझ होने तक मन को भी तो समझाना है मंजिल आग का दरिया है और तैर के जाना है आज सोचा दूध का दूध और पानी का पानी करूँ चुपचाप यूँ  हीं बैठी रहूं  या सत्य के लिए लड़ूँ क्या कौन ए जिंदगी मेरा तो तौर पुराना है सत्य आग का दरिया है और तैर के जाना है प्रेम के बस तीन द्वार बाकि सब खुद से दूर ले जायेंगे प्रभु पुस्तक और परिवार के बल पर ही हम खुद को पहचान पाएंगे सुख खोज लो जीवन में वार्ना क्या लाए थे क्या ले

संसार

यह कविता  लिखी गयी थी ९ दिसंबर २०१६ में जब मेरा १०वी के प्री बोर्ड  परीक्षा में एक परीक्षा बहुत ख़राब हुई थी | उस अवसादमय परिस्तिथि यह कविता लिखी थी | आग में तपकर पीला सोना होता है जिंदगी में जो लिखा है वही होना होता है| हर कोई नहीं पा सकता है हर ख़ुशी हर किसी को कई बार तो जिंदगी में रोना होता है || न जाने क्या ये कर्म सिखाते है हमे न जाने क्यों ये प्यार भरी बातें खा जाते है हमे | न जाने कब तक भाग्य का कोप सहना होगा न जाने क्यों असफलता के बुरे ख्याल खा जाते है हमे || एक आईना दिखला दो कोई सत्य का हटा दो आवरण इस जटिल दुनिया पर पड़े असत्य का| कुछ अच्छा होगा, ये ख्वाब छोड़ दो यह खेल नहीं मेहनत का पर हमारे अपने कृत्यों का || आज फिर उदास मन को टोकती हूँ मेरी नहीं है गलती , न जाने किस किस को कोसती हूँ| पर ये हमेशा क्यों याद रखना पड़ता है कि हर वक्त अकेले मै भी न जाने क्या सोचती हूँ||  अब नाम से भी डर लगता है असफलता के न जाने कितनी बार गिरी हूँ डगमगा के | हर बार उठने को सहारा क्यों खोजती हूँ इक बार तो कोशिश करूँ जोर अपना आजमाने के || अब जिंदगी सिखाती है तो खता क्या हमारी

हौसला

यह कविता मैंने २० दिसंबर २०१६ में अपने प्री बोर्ड ख़त्म होने के बाद लिखी थी | आज हरतरफ ही तो चुनौतियों का दौर है| है मन में बात अलग सी कुछ जुबान पर कुछ और है | हैं आँधियों में हम फंसे मुसीबतों का जोर हैं| हर तरफ देखो यहाँ दुखों का ही तो शोर है|| न जाने क्या मै सोचता पर करता नहीं हूँ कुछ | चुनौतियों को देखकर वीर तू न जाना रुक | ये ही है वो चुनौतियाँ जो तुझको देंगी परख | इन चुनौतियों का तू सामना कराएगा मन में ये विश्वास रख || क्या रोकेंगे पहाड़ ये है सिंह की दहाड़ ये| न आज रुक सकेगा तू न आज झुक सकेगा तू | बढ़ता चल तू धार सा कृपाण के एक वार सा | न हौसला तू खुद का  खो रख हौसला हज़ार सा || आज डट के कर तू सामना इस विश्व के प्रहार का | चाहे हो वार एक का या वार हो हज़ार का | न हौसला तू अपना खो रख हौसला पहाड़ सा | कर खुद को तू इतना बुलंद लगे सिंह की दहाड़ सा|| चल अब तुझे रुकना नहीं दिखा दे विश्वा को तू ये | हर बार जो है हारता वो हारेगा नहीं फिर से| करना क्या है तुझे एक बार तू ये सोच ले | बस आँख निशाने पर तू रख और परिणाम खुद तू देख ले | न हारेगा तू अब कहीं