अपराजिता

आज उसको खुद से ही आस है |
दुनिया पर नहीं उसे खुद पर विश्वास है ||
कमजोर है मगर कमज़ोरी को ताकत बनाती है जो |
डर को भी डरा दे , अपरिजिता है वो ||

दुनिया ने जो सिखाया सब छोड़ चली है|
अपने हाथों की लकीरें मोड़ रही है ||
अब नहीं दूसरों के सहारे चलती है जो|
हार के भी न हारे , अपराजिता है वो||

दूसरों की नहीं दिल की भी सुनती है|
अपने  सपनो की दुनिया को अकेले ही बुनती है||
खुद की सबसे बड़ी मददगार है जो |
गिरकर भी न गिरे , अपराजिता है वो|| 

यह एक नहीं हर नारी की कहानी है|
तेरा जीवन ही नहीं तेरा संघर्ष भी रूहानी है|| 
जमीन से उठकर  आसमान को ले तू छू |
तेरे संघर्ष में शक्ति है क्यूंकि अपराजिता है तू ||

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