लो बदला

यह कविता मैंने  १५ फरवरी २०१९ को पुलवामा में हुए कायराना हमले के बाद लिखी थी | इस कविता को लिखते वक्त मेरी आखों में अश्रु थे जिस कारण इस कविता में सुंदरता अथवा रस का आभाव हो सकता है | यह कविता मैंने पूर्णतः भावनाओ से प्रभावित होकर लिखी थी |



इतनी गमगीन हूँ  कि कुछ कह नहीं पा रही हूँ

इस आराम की जिंदगी में रह नहीं पा रही हूँ |

कोई इतना दयालु है कि मेरे चंद खुशनुमा पलों के खातिर मिट गया

अपनी यह कृतघ्नता मै सह नहीं पा रही हूँ ||


हद तो तब हो गयी जब उसने आह तक न कि खुद को मटाने में

ख़ुशी ख़ुशी कुर्बान हो गया वो हमको बचाने में|

हम कहाँ इस महानता के लायक थे साहब

हम तो वो है जो बस लड़ने की वजह ढूंढ़ते थे हर ज़माने में ||


शायद दशकों बाद आज हमे अपनी एकता का एहसास है

तुम्हारा जीवन तो अतुलनीय था ही तुम्हारा बलिदान भी ख़ास है|

यदि आज भी तुम्हारा एहसान न चुका पाए हम

तो हमारा आक्रोश, क्रोध और जीवन सब बकवास है ||


आज चमक तुम्हारी इतनी है कि तुमसे नजरें नहीं मिला पा रही हूँ

और मै तुम्हारी चरणों की धूल बराबर भी नहीं ये सोचकर अपनी ही नज़रों में गिरती जा रही हूँ |

बस अब बहुत हुआ उसका वार बार बार सहना

आखिर कितने ही दशकों से ये वार मै सहती चली आ रही हूँ ||


बहुत हो गया इंतज़ार अब वार अपना हो अगला

कितना याद दिलाऊं मै कि 'उस' सर्प ने कब कब है विष उगला |

बहुत हो गया अब ये मेरी सहनशीलता की परिकाष्ठा है

अब नहीं इंतजार अब तो बस सीधे तुम लो बदला ||


आशा है आपको यह कविता पसंद आयी होगी और आपके मन में देशप्रेम की भावना उत्पन्न हुई  होगी ||

जय हिन्द 

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