एक आग का दरिया है और तैर के जाना है

यह कविता मैंने तब लिखी थी जब मेरा एक अहम् परीक्षा में चयन नहीं हुआ था | तब के अवसादमय  हालात  में यह कविता लिखी गई है |



आँखे खोलते ही संसार देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं

रोते हुए हस्ते हुए क्या क्या कह जाते हैं

जब खुद ही नासमझ है तो कठिन दूसरों को समझाना है

जीवन एक आग का दरिया है और तैर के जाना है


दिल को भी न पता हो जब ,कि क्या कह जायेंगे

कदम आगे बढ़ेंगे या दौड़ में पीछे रह जायेंगे

सफलता असफलता से भी कठिन खुद को अपना भविष्य बतलाना है

संसार एक आग का दरिया है और तैर कि जाना है


जब समझ आएगा तो सोचेंगे आगे क्या करना है

जी भर के जीना है या परिणाम से डरना है

इतनी समझ होने तक मन को भी तो समझाना है

मंजिल आग का दरिया है और तैर के जाना है


आज सोचा दूध का दूध और पानी का पानी करूँ

चुपचाप यूँ  हीं बैठी रहूं  या सत्य के लिए लड़ूँ

क्या कौन ए जिंदगी मेरा तो तौर पुराना है

सत्य आग का दरिया है और तैर के जाना है


प्रेम के बस तीन द्वार बाकि सब खुद से दूर ले जायेंगे

प्रभु पुस्तक और परिवार के बल पर ही हम खुद को पहचान पाएंगे

सुख खोज लो जीवन में वार्ना क्या लाए थे क्या ले जाना है

प्यार एक आग का दरिया है और तैर के जाना है


हर पग पर चुभेंगे काटें सैकड़ो यहाँ

कुछ रखे होंगे कुछ रखवाए जायेंगे वहां

पर हम क्यों डरे हमे तो चोट खाकर भी बढ़ जाना है

संघर्ष आग का दरिया है और तैर के जाना है


लाख छुरी रखो तुम गर्दन पर मेरी ऐ डर

सामना करा था करा है और करेंगे जीवन भर|

हार में क्या रखा है मुझे तो जीत कर दिखलाना है

कि भले ही आग का दरिया है मगर शान से जाना है ||

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