हौसला

यह कविता मैंने २० दिसंबर २०१६ में अपने प्री बोर्ड ख़त्म होने के बाद लिखी थी |

आज हरतरफ ही तो
चुनौतियों का दौर है|
है मन में बात अलग सी कुछ
जुबान पर कुछ और है |
हैं आँधियों में हम फंसे
मुसीबतों का जोर हैं|
हर तरफ देखो यहाँ
दुखों का ही तो शोर है||

न जाने क्या मै सोचता
पर करता नहीं हूँ कुछ |
चुनौतियों को देखकर
वीर तू न जाना रुक |
ये ही है वो चुनौतियाँ
जो तुझको देंगी परख |
इन चुनौतियों का तू सामना कराएगा
मन में ये विश्वास रख ||

क्या रोकेंगे पहाड़ ये
है सिंह की दहाड़ ये|
न आज रुक सकेगा तू
न आज झुक सकेगा तू |
बढ़ता चल तू धार सा
कृपाण के एक वार सा |
न हौसला तू खुद का  खो
रख हौसला हज़ार सा ||

आज डट के कर तू सामना
इस विश्व के प्रहार का |
चाहे हो वार एक का
या वार हो हज़ार का |
न हौसला तू अपना खो
रख हौसला पहाड़ सा |
कर खुद को तू इतना बुलंद
लगे सिंह की दहाड़ सा||

चल अब तुझे रुकना नहीं
दिखा दे विश्वा को तू ये |
हर बार जो है हारता
वो हारेगा नहीं फिर से|
करना क्या है तुझे
एक बार तू ये सोच ले |
बस आँख निशाने पर तू रख
और परिणाम खुद तू देख ले |
न हारेगा तू अब कहीं
न हारेगा तू अब कभी |
इस बात को तू सोचले
इस बात को तू ठान ले ||

धन्यवाद् 

Comments

  1. मुझ जैसे अध्ययनरत विद्यार्थी के लिए अति प्रेरणादायक कविता।

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