संसार

यह कविता  लिखी गयी थी ९ दिसंबर २०१६ में जब मेरा १०वी के प्री बोर्ड  परीक्षा में एक परीक्षा बहुत ख़राब हुई थी | उस अवसादमय परिस्तिथि यह कविता लिखी थी |

आग में तपकर पीला सोना होता है
जिंदगी में जो लिखा है वही होना होता है|
हर कोई नहीं पा सकता है हर ख़ुशी
हर किसी को कई बार तो जिंदगी में रोना होता है ||

न जाने क्या ये कर्म सिखाते है हमे
न जाने क्यों ये प्यार भरी बातें खा जाते है हमे |
न जाने कब तक भाग्य का कोप सहना होगा
न जाने क्यों असफलता के बुरे ख्याल खा जाते है हमे ||

एक आईना दिखला दो कोई सत्य का
हटा दो आवरण इस जटिल दुनिया पर पड़े असत्य का|
कुछ अच्छा होगा, ये ख्वाब छोड़ दो
यह खेल नहीं मेहनत का पर हमारे अपने कृत्यों का ||

आज फिर उदास मन को टोकती हूँ
मेरी नहीं है गलती , न जाने किस किस को कोसती हूँ|
पर ये हमेशा क्यों याद रखना पड़ता है
कि हर वक्त अकेले मै भी न जाने क्या सोचती हूँ||

 अब नाम से भी डर लगता है असफलता के
न जाने कितनी बार गिरी हूँ डगमगा के |
हर बार उठने को सहारा क्यों खोजती हूँ
इक बार तो कोशिश करूँ जोर अपना आजमाने के ||

अब जिंदगी सिखाती है तो खता क्या हमारी
जब जिंदगी में हमारे है चरों ओर अंधियारी |
आखिर कब तक उजाले को ढूंढती रहूं
चलो अंधेरे को दिखाते है उसमे भी जिंदगी है कितनी प्यारी ||

जीवन में न किसी के लिए न जीना है न मरना
जो कुछ भी करना है अपने लिए है करना |
इस ख्याल के साथ ही तो आसूं पोछती हूँ
ख्याल किसको है मेरा वार्ना ||

इस अतिविशाल संसार में क्या मांगू किससे मांगू
जानकारी भी तो मुफ्त नहीं पैसे के पीछे क्यों भागूं |
इस संसार में मदद कि आस भी मै कहाँ लगाती हूँ
ऐसा कौन है यहाँ जिसको मै अपना मानू||

सब कहते है रुकावटों से मत डरो
एक बहादुर बेटी हो शेरनी सी बहादुर बनो |
आखिर किस काम की है ये बहादुरी मै सोचती हूँ
जो मदद न कर सके की कौनसा रास्ता चुनो||

हर कोई कहता है मेहनत करो
आग में तप कर सोना पीला होता है मत भूलो |
पर क्या कोयला भी सोना हो सकता है ये मै पूछती हूँ
हर चीज़ पर हर कहावत  लागु नहीं होती यह तो समझो ||

इस कविता से तुम न होना निराश
पर यह जगत का सत्य है जान लो आज |
मेहनत जरूर करो यह मै बोलती हूँ
पर पहचान लो तुम सोना हो या कोयला फिर लगाओ आंच ||

धन्यवाद् 

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