डॉ सुब्रमण्यम चंद्रशेखर

यह कविता है एक महान भारतीय अमरीकी वैज्ञानिक डॉ सुब्रमण्यम चद्रशेखर के बारे में | चंद्रशेखर की असीमित सोच ने उन्हें एक ऐसे सिद्धांत की खोज करने पर मजबूर कर दिया जिसका पहले तो बहुत विरोध हुआ मगर फिर उसी सिद्धांत के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला| उस सिद्धांत का नाम है चंद्रशेखर की सिमा और उसी सिद्धांत की पुष्टि में आए  रोड़ों  के विषय में है यह कविता |


१९३० की एक सुबह निराली थी
एक युवा भारतीय वैज्ञानिक के मन में अजब बेखयाली थी
आइंस्टीन  के सिधान्तो को झुठलाने चला था जो
अपनी प्रतिभा का लोहा दुनिया को मनवाने चला था वो
तारों के भी अंदर आसानी से झांक रहा था
वो १९ वर्षीय वैज्ञानिक अपने गुणों को भांप रहा था ||


आजाद खयालो के ब्राह्मण परिवार का चंद्र था जो
छोटी सोच के बड़े अंग्रेज़ो के बीच फास गया था वो 
परदेसी समझ हर किसी ने उसका तिरस्कार किया 
उसके ख्यालों को भी अवसादों ने घेर लिया
मगर ईश्वर के सहारे म्हणत से उसने काम किया 
और एक दिन एडिंग्टन ने उसकी प्रतिभा को पहचान लिया॥


 एडिंग्टन अपने कुशल कार्य के लिए जग द्वारा माना था 
चंद्रा को भी अलग आयाम पर जाना था
एडिंग्टन ने चंद्रा को खूब समझाया
अपना अद्भुत सिद्धांत जगत को दिखाओ ऐसा बतलाया
आखिर चंद्रा ने मान ली एडिंग्टन की बात 
और एडिंग्टन ने रहस्यमय ढंग से खींच लिया अपना मदद का हाथ ||


जब चंद्रा ने मरते तरूण का सटीक माप जगद को बताया 
उसकी पुष्टि की रह में पहला रोड़ा  एडिंग्टन ही लाया
कहा , गणितज्ञ हो तभी तो गणित से खेल रहे हो दोस्त
तुम्हारे सिद्धांत का प्रमाण नहीं है कोई ठोस
उस समय के महानतम वैज्ञानिक के विरोध ने कुछ ऐसा असर दिखाया
चंद्रा को सवालों के जवाब देने तक का मौका न मिल पाया ||

कई वर्षों तक इस सिद्धांत की सत्यता पर बहस हुई
एडिंग्टन की सच्चाई भी वर्षो तक रहस्य रही
फिर एक अंतरिक्ष शास्त्री ने चंद्रा के सिद्धांत का अंतरिक्ष में प्रमाण दिखाया
एडिंग्टन ने भी रूखे लफ्जो में कहा ,"माफ़ करदो मित्र मैंने तुम्हे अपमानित करवाया " 
मगर रुख न बदला एडिंग्टन का , उसकी प्रसिद्धि से चंद्रा की कोशिश हार गयी
एक बार फिर वो महान गणना सप्रमाणित होने पर भी नकार दी गयी ||

सन १९६६ में हाइड्रोजन बम  पर काम शुरू हुआ 
चंद्रा के जीवन में भी नया आयाम शुरू हुआ
हाइड्रोजन बम ने सिद्ध किया के मरते तारों के लिए चंद्रा का सिद्धांत सही था 
मगर यह सुनने के लिए एडिंग्टन अब इस दुनिया में नहीं था 
१९८३ में अपनी महानतम खोज के लिया डॉ सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को मिला नोबेल पुरस्कार
और इस तरह ख़त्म हुआ प्रसिद्धि द्वारा ज्ञान का तिरस्कार ||



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