मै हिंदी हूँ

आज सिर्फ अस्तित्व है स्वामित्व था जिसका कल  तक
आज सिर्फ भाषा है अभिलाषा थी जिसकी कल तक
आज सिर्फ कलम है दिल था जिसका कल तक
आज सिर्फ संघर्ष है शिखर था  जिसका कल तक ||

कभी किसी का गर्व आज गले से निकलने को तरसती है
कभी सहूलियत संसार की बनी जो आज कठिनाई बनने से डरती है
कभी की हरदिलजान को आज जान तक का खतरा है
कभी के घनघोर संघर्ष को आज अभिमान का खतरा है||

अब तो जन मन से उसका मान भी जा रहा है
लगता है की कहीं हमारा स्वाभिमान भी जा रहा है
दूर नहीं वो दिन जब साहरा थामकर खड़े हुए जो  उसी को आँख दिखाएंगे
ऐसा एक भी दिन हम हिंदी प्रेमी तो न सेह पाएंगे ||

अब यह अस्मिता नहीं अस्तित्व का सवाल है
क्या कोई बचाएगा उसे या वो भविष्य का डूबता ख्याल है
क्यों हम दिखावे के रंग में इतने रंग गए कि आज हमारी मां ही बेहाल है||

पहले शब्द से लेकर अंतिम वाणी का यही सहारा था
वो भी एक दौर था जब सारा जमाना हमारा था
ऐ केवट अब इस नाव को मझदार में न छोड़ यूँ हीं
पछतावे के इस समंदर का एक तू ही किनारा था ॥



सभी पाठकगणो को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ॥

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